आधुनिकता की चकाचौंध और चाइनीज दीये ने पारंपरिक मिट्टी के दीये को धकेला हाशिये पर

कारीगरों ने की बाजार में चाइनीज दीये नहीं खरीदने की अपील  

By. नरेंद्र सेठी  

अमृतसर,4 नवंबर। कभी दिवाली का केंद्रबिंदु रहा मिट्टी का दीया अब लगातार हाशिए पर धकेला जा रहा है। बिजली श्रृंखला के आगमन के साथ, मिट्टी के दीयों की मांग तेजी से घट रही है। मिट्टी का दीपक अपने आप में शिल्प और कला का अनूठा प्रतिनिधित्व है। प्राचीन काल में मिट्टी के दीपक को न केवल दिवाली के अवसर पर बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में भी प्रकाश का मुख्य स्रोत माना जाता था। चूंकि उस समय व्यावसायीकरण और बाजारीकरण प्रचलित नहीं था और पारस्परिक निर्भरता आम लोगों के घनिष्ठ संबंधों का मुख्य आधार थी।

बुनियादी जरूरतें एकदूसरे से पूरी करते थे

शिल्पकार नरेश कुमार,बलबीर सिंह पंजाब सचिव प्रजापति बिरादरी और प्रजापति बिरादरी महासचिव गुरप्रीत सिंह ने कहा कि आजकल घटती परस्पर निर्भरता समाज में दरार का एक प्रमुख कारण है। प्राचीन काल में लोग अपनी बुनियादी जरूरतें एक-दूसरे से पूरी करते थे। मिट्टी के बर्तनों का उपयोग खाना पकाने से लेकर खाने-पीने तक सभी चीजों के रखरखाव और संरक्षण के लिए किया जाता था। गांवों में रहने वाले प्रजापति समाज के लोग इन बर्तनों, तसलों को धोते थे और दीपक भी तैयार करते थे। उस दौरान ये वस्तुएं किसान परिवारों को गेहूं के दाने और जानवरों के लिए हरे चारे के बदले में दी जाती थीं।

मिट्टी के दीये ही जलाएं

लगातार मिट्टी के दीयों की कम बिक्री को लेकर अमृतसर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए प्रजापति समुदाय ने बताया कि वे काफी समय से मिट्टी के दीये बनाने का कारोबार कर रहे हैं। लेकिन लगातार दिवाली के सीजन में जब चाइनीज दीये बाजार में आते हैं तो उनके कारोबार पर बुरा असर पड़ता है। इसके साथ ही उन्होंने शहरवासियों से अपील की है कि इस बार केवल मिट्टी के दीये ही जलाएं, ताकि मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगरों के परिवार की भी जीविका चल सके।