गोगा नवमी के दिन मिट्टी के घोड़े को पूजने की भी परंपरा
लेखक , सतीश मेहरा
प्राचीन लोक परंपराएं तीज- त्योहार और विभिन्न सामाजिक मान्यताएं ही भारतीय संस्कृति को समृद्धता प्रदान करती हैं । ये तीज त्यौहार ,परंपराएं मानव जीवन में उल्लास ,उत्साह और साहस का संचार करके उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती हैं। प्रत्येक त्योहार और परंपरा में सामाजिक सद्भाव, समाजोत्थान और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश होता है। भारतवर्ष में हर माह कोई ना कोई त्यौहार मनाया जाता है। इस मौसम को वैसे भी त्यौहारी मौसम कहा जाता है। तीज से शुरु होकर रक्षाबंधन, कृष्णाष्टमी,गोगा नवमी, गणेश चतुर्थी,दशहरा, दीवाली जैसे महत्वपूर्ण त्यौहार आते हैं ।
गोगा नवमी का यह त्यौहार
भाद्रपद कृष्णपक्ष नवमी को गोगा नवमी का त्यौहार देश में धूमधाम से मनाया जाता है। सभी जाति समुदायों के लोग इस त्यौहार को मनाते हैं। इस प्रकार से गोगा नवमी का यह त्यौहार सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है। जाहरवीर गोगा जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1003 में भाद्रपद कृष्णपक्ष नवमी के दिन राजस्थान के ददरेवा स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम जेवर सिंह चौहान और माता का नाम बाछल देवी चौहान था।
सांपों के साथ दिखाने की परंपरा
ऐसा माना जाता है की वीर गोगा जी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। उसी दिन क्षेत्र में एक ब्राह्मण के घर नरसिंह पांडे का जन्म , रतन जी और भज्जू कोतवाल का जन्म हुआ था। सभी गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे और घनिष्ठ मित्र बने।सभी ने ताउम्र आपस में मित्रता की मिसाल कायम की और सामाजिक सद्भाव के नए युग की शुरुआत हुई। जाहरवीर गोगा जी को पशुधन संरक्षक, सांपों के देवता और पर्यावरण संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है। गोगा जी महाराज को कहीं घोड़े पर सवार ,कहीं खेजड़ी के पेड़ के पास तो कहीं सांपों के साथ दिखाने की परंपरा है ।
देवी शक्ति का चमत्कार
गोगा नवमी के दिन मिट्टी के घोड़े को पूजने की भी परंपरा है। इस दिन गांव देहात में मेले लगते हैं और गोगा स्वरूप निशान की पूजा होती है। रात भर डेरु, डमरू के साथ ‘निशान’ के स्थान पर जगराता कर भजन कीर्तन के द्वारा मानवता के लिए शांति समृद्धि की कामना की जाती है। बताया जाता है कि बाल्यकाल से ही गोगा जी को नाग देवता का ईष़्ट प्राप्त था। युवावस्था में भी गोगा जी महाराज में देवी शक्ति का चमत्कार कई बार प्रकट हुआ।
गुरु गोरखनाथ की शरण में गई
अपने पिता जेवर सिंह की मृत्यु के बाद गोगाजी सिंहासन पर बैठे। उनके चचेरे भाई अर्जुन और सर्जन की वीर गोगा जी से बड़ी दुश्मनी रखते थे। अपने चचेरे भाइयों और गोगा जी के बीच युद्ध हुआ। गोगा जी महाराज ने उनकी सेना के साथ-साथ दोनों भाइयों को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना से नाराज होकर गोगा जी महाराज की माता ने उसे 12 साल का बनवास दे डाला। कहा जाता है कि गोगा जी ने धरती मां से अपनी गोद में समेट लेने की प्रार्थना की और धरती में समा गए। गोगा जी की पत्नी श्रीयल को बड़ा दुख हुआ और वह अपने सुहाग की वापसी के लिए गुरु गोरखनाथ की शरण में गई।
धरती फट गई और दोनों समा गए
गोरखनाथ जी ने अपने तपोबल से गोगा जी को धरती से वापस प्राप्त कर लिया । वीर गोगाजी अपनी मां के डर से अपनी पत्नी से छुप कर मिलने लगे । इस बात की भनक जब उनकी मां को लगी तो मां ने क्रुद्ध होकर आगे से मुंह न दिखाने के लिए कह डाला। गोगा जी महाराज ने भी अपने आप को धिक्कारा और एक जगह समाधि लगाकर उसमें लीन हो गए। एक दिन उसकी पत्नी सीरियल भी समाधि स्थल पर पहुंच गई और वहीं गिरकर बेहोश हो गई। इस समय धरती फट गई और दोनों पति-पत्नी उसमें समा गए। यही समाधि स्थल आगे चलकर गोगामेड़ी के रूप में विख्यात हुआ।
गोगा जी महाराज की मूर्ति स्थापित
गोगा नवमी के दिन राजस्थान के इस गोगामेड़ी के स्थान पर बड़ा भारी मेला लगता है। विभिन्न राज्यों से लोग पीले वस्त्र धारण कर यहां खुशहाली की मन्नत मांगने आते हैं।यहां गोगामेड़ी के स्थान पर नीले घोड़े पर सवार हाथ में शास्त्र लिए हुए गोगा जी महाराज की मूर्ति स्थापित है। यह भी कहा जाता है कि मोहम्मद गजनवी भी गोगा जी महाराज की वीरता से बड़ा प्रभावित था और वह गोगा जी के दर्शन करने यहां आया था।
सद्भाव और भाईचारे का माहौल होगा
किंवदंती यह भी है कि गोगामेड़ी के निर्माण का श्रेय एक ब्राह्मण को जाता है। एक ब्राह्मण यहां जंगल में गाय चराने आता था। उनमें से एक गाय का दूध प्रतिदिन एक नागराज पी जाता था। इस घटना से ब्राह्मण बड़ा हैरान परेशान रहने लगा और उसने गायों की चौकसी करनी शुरू कर दी। एक दिन जब उसने नागराज को गाय का दूध पीते देख लिया। उसने हाथ जोड़कर नागराज से इस माया के बारे में पूछा तो नागराज ने बताया कि मैं साक्षात् गोगा चौहान हूं । यहां पूजा करने से पूरे क्षेत्र में शांति सद्भाव और भाईचारे का माहौल होगा और प्रगति होगी।
शांति और प्रगति की मन्नत मांगते हैं
तभी से ब्राह्मण ने यहां एक कच्ची मेड़ी बनाकर बाबा की पूजा अर्चना शुरू की। आज यह स्थान गोगामेड़ी के नाम से विख्यात है । बाद में इसका जीर्णोद्धार महाराज गंगा सिंह ने किया। गोगा नवमी के दिन यहां विभिन्न प्रदेशों से लोग ‘निशान’ लेकर पहुंचते हैं। ‘निशान ‘के ऊपर मोरपंख ,कौड़िया और डमरू आदि बांधकर भव्य रूप से सजाया जाता है। श्रद्धालुगण गोगा जी महाराज के गीत गाते हुए जय जयकार करते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से आए यह भक्तजन समाज में सांप्रदायिक सद्भावना, सामाजिक एकता, खुशहाली और परिवार में शांति और प्रगति की मन्नत मांगते हैं। इस प्रकार से पवित्र त्यौहार सभी धर्म, समुदायों और जाति के लोगों को एकता के सूत्र में बाधने का संदेश देता है।