संन्यासियों को शास्त्र और शस्त्र में निपुण बनाने के लिए जगद्गुरु शंकराचार्य ने कि थी अखाड़ों की स्थापना : श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज

दशहरे पर महानिर्वाणी अखाड़े में मंत्रोच्चारण के साथ हुआ शस्त्र पूजन 

By. कुलदीप सिंह

हरिद्वार,२४अक्टूबर।  दशहरे के दिन आदि जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशनामी संन्यासी परंपरा के नागा संन्यासी अखाड़ों में शस्त्र पूजन का विधान है। पिछले २५०० वर्षों से दशनामी संन्यासी परंपरा से जुड़े नागा संन्यासी इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए अपने-अपने अखाड़ों में शस्त्र पूजन करते हैं। 

भाले देवता के रूप में पूजे गए

श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज का कहना है कि विजयदशमी के अवसर पर शस्त्र पूजा की इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए आज श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, कनखल में भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश नामक भाले देवता के रूप में पूजे गए। इसके साथ ही आज के युग के हथियार और प्राचीन काल के कई प्रकार के हथियारों की पूजा मंत्रोच्चारण के साथ की गई। देव रूपी दोनों भाले भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश देवता रूपी भाले कुंभ मेले के अवसर पर अखाड़ों की पेशवाई के आगे चलते हैं। इन भाला रूपी देवताओं को कुंभ में शाही स्नानों में सबसे पहले गंगा स्नान कराया जाता है। उसके बाद अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर जमात के श्रीमहंत और अन्य नागा साधु स्नान करते हैं।

धर्म की रक्षा की जाए

उन्होंने बताया कि दशहरे के दिन हम अपने देवताओं और शस्त्रों की पूजा करते हैं। आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने राष्ट्र की रक्षा के लिए शास्त्र और शस्त्र की परंपरा की स्थापना की थी। हमारे देवी-देवताओं के हाथों में भी शास्त्र-शस्त्र दोनों विराजमान हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय परंपरा में शक्ति पूजन की विशेष परंपरा रही है। महानिर्वाणी अखाड़े की प्राचीन परंपरा के अनुसार अखाड़े के रमता पंच नागा संन्यासियों द्वारा शस्त्रों का पूजन किया गया। उन्होंने बताया कि शंकराचार्य द्वारा संन्यासियों को शास्त्र और शस्त्र में निपुण बनाने के लिए अखाड़ों की स्थापना की गई थी,जिससे धर्म की रक्षा की जाए।